धर्म क्या है ? धर्म की विवेक और शास्त्र सम्मत परिभाषा क्या है?
यमराज को 'धर्मराज' भी कहा जाता है,क्योंकि वे मनुष्यों को उनके कर्म के अनुसार निर्णय करके गति देते हैं।अब धर्मराज किसी संप्रदाय विशेष के तो हो नहीं सकते कि अपने संप्रदाय के लोगों को ही स्वर्ग या नरक भेजेंगे।
महात्मा बुद्ध की दृष्टि वैज्ञानिक है उनके अनुसार वस्तु के शास्वत स्वभाव को जानना ही धर्म की वास्तविक परिभाषा है।
" यदा यदा हि धर्मस्य ...." जब जब धर्म की हानि होती है,अधर्म की वृद्धि होती है,तब तब मैं धर्म की पुनः स्थापना के लिए अवतार लेता हूं" यहां भगवान कृष्ण किस धर्म विशेष की हानि की बात कर रहे हैं?क्या कभी धर्म की हानि संभव है? नहीं!
यहां अभिप्राय समाज में शुभ गुणकर्म व्यवहार आचार-विचार न्याय के नष्ट-भ्रष्ट होने से प्रतीत होता है।
स्मरण रहे महाभारत का भीषण युद्ध भी धर्म की पुनः स्थापना हेतु ही हुआ। कौरव पांडव क्या पृथक-पृथक धर्म के अनुयाई थे? नहीं !
श्रीमद्भागवत गीता के प्रथम श्लोक में ही धृतराष्ट्र संजय से प्रश्र करते हैं कि "धर्म भूमि कुरुक्षेत्र" में एकत्रित युद्ध की इच्छा वाले मेरे और पाण्डु पुत्रों ने क्या किया?
यहां उन्होंने कुरुक्षेत्र को "धर्म क्षेत्र' कहा है,अर्थात कुरुक्षेत्र न्यायप्रिय सदाचारी सुखी संपन्न खुशहाल सामाजिक राज्य क्षेत्र कहा गया है।
निश्चित ही "यदा यदा हि धर्मस्य..." कृष्ण के वचन में धर्म की पुनः स्थापना का उद्देश्य यही है कि पाप कर्म में लिप्त अवगुणी राजा की अनीति शोषण दमन अत्याचार स्त्रियों के अपमान से पीड़ित दुखी जनता को इस आतताई राजा के शासन से मुक्ति दिलाने के लिए ही महाभारत युद्ध हुआ। जिससे सत्य सदाचारी सर्वगुण संपन्न कल्याणकारी न्यायप्रिय शुभ आचरण युक्त समाज और राज्य की पुनः स्थापना हो सके।
यहां भगवान कृष्ण का "धर्म" के बारे में आशय समाज-राज्य के न्यायप्रिय सद्गुण और शुभ कर्म युक्त आचरण ही उद्घाटित होता है। किसी पंथ या संप्रदाय विशेष से कदापि नहीं !
॥ तत्सत,अर्थात जो सत्य है ॥